नाथ संप्रदाय में भगवा रंग का महत्व

नाथो ने भगवा क्यो अपनाया और इसका क्या महत्व है सतयुग के पहले जब मानव का अस्तितव था ! संत महात्मा वन मे चर्म के वस्त्र पहंते थे ! आदीकाल मे बाघम्बर तथा मृग चर्म का वस्त्र स्वरूप मे उप्योग करते थे ! मृगछाला कटी वस्त्र रूप मे लपेटकर उपयोग करते थे ! जप तप के लिये इसे आसन के रूप मे उपोयग करते थे !फिर सतयुग का आगमन हुआ ! सतयुग मे एक बार आदिनाथ (महादेव) जी ने आदीशक्ती (सती पर्वती) जी को गुप्त ज्ञान तथा योग ज्ञान आत्म ज्ञान का उपदेश सुनाया ! तब सती पर्वती को ज्ञान के प्रभाव से वैरग्य तथा त्याग का भाव निर्माण हुआ! तब शिव शक्ती ने अपने रक्त से चोला बनाया था !आगे जब गुरू गोरक्षनाथ जी ने माता पर्वती जी से भेंट करी, तो उनके मन मे मा का भाव उत्पन्न हुआ ! माता अती प्रसन्न हुई और प्रसन्नता से यह रक्त रूप चोला गुरू गोरक्षनाथ को दिया ! तबसे यह रक्त रूप मे भगवा को नाथ सिद्धो ने अपनाया और सभी साधू सम्प्रदाय मे यह रंग त्याग और वैराग्य का प्रतीक बन गया ! इस भगवे का तीनो लोको मे सम्मान है ! इस भगवे बाने से भूत प्रेत असुरी शक्तिया भय से दूर भागतीहै !ग्यान , वैराग्य, त्याग, बहमचार्य, सत्य, अहिंसा, दया , आदर्श, मर्यादा शांती इत्यादी का प्रतीक ये भग्वा रंग बना ! नाथ सिद्ध इसका भेष बनाते है !

▶1. कंथा (लाल रक्तरंगीन तथागरुवेरंग मे) :-गले से लेकर घुटने तक समपूर्ण काया को ढकता है ! यह चोला ब्रह्म्चार्य योगी पहंते है ! मंत्र शक्ती, तंत्र शक्ती, तारण – स्तम्भन शक्ती विद्या मे कंथा धारण करते है !
▶2. अल्फी (रक्त लालयागेरुवा)कंथी की तरह ही सम्पूरण शरीर ढकता है ! इसमे बडी बडी जेबे होती है ! दोनो हाथो मे खूली बाह वाली अल्फी तपस्वी योगेश्वर पहंते है ! जप साध्ना या उग्र तपस्या के लिये उप्युक्त !
▶3. गाती (रक्त लालयागेरुवाया सफेद )8-9 मीटर लम्बी धूती है ! इस प्रकार पहंतेहै की दोनो हाथो के बगल से दो छोर निकाल कर सीने पर से दोनो कन्धो पर विरुद्ध दिशा से लपेटकर कमर मे गांठ बान्धते है ! चलने फिरने और आसन लगाने मे आसानी है ! कर्म योगी स्थानधारी भी पहंनते है !
▶4. कटी वस्त्र (रक्त लाल,गेरुवाया सफेद)1.5 से 3 मीतर लम्बीकमर मे पहने जानी वाली कटी घुटने तक शरीर को ढकती है ! अन्य शरीर खूली ही रहता है ! रम्मत योगी का वस्त्र5. पंच बाना ( गेरुवा या रक्त लाल)इसमे लंगोटी, धोती, कुर्ता, साफा आता है ! बडे बडे स्थानधारी, महंत पीर योगेश्वर बिना सिलाय ही इसे पहंनते है !

भगवा मंत्र

सत नमह आदेश गुरूजी को आदेश ओम गुरुजी ओम सोहम धुन्दुकारा शिव – शक्ती ने मिल कियापसारा नख से चीर भग बनाया रक्त रूप मे भगवा आया अलख पुरष ने धारण किया तब पीछे सिद्धो को दिया ! आवो सिद्धो धरलो ध्यान, भगवा मंत्रको करो प्रणाम इतना भगवा मंत्र सम्पूरण भया श्री नाथ जी गुरुजी को आदेश आदेश,,,,,) .